साधक का लक्ष्य उस ‘एक’ को पाना है, जो प्रेम, शांति, ज्ञान,
शक्ति व पवित्रता का सागर है. यदि वह कुछ और पाने के लिए परमात्मा से प्रार्थना
करता है, तो वह अभी साधक ही नहीं हुआ. जिसके हृदय में कृतज्ञता का भाव हो और मन
में प्रसन्नता का फूल खिला हो, उससे सत्य अपने को ज्यादा देर तक छुपा नहीं सकता.
यदि किसी के भी प्रति हृदय में शिकायत का भाव है तो कृतज्ञता अभी सधी नहीं है, यदि
किसी भी कारण से मन कुम्हला जाता है तो प्रसन्नता पर अभी अधिकार नहीं हुआ.
परमात्मा आनंदित रहकर ही पाया जा सकता है. जब हम जगत को जैसा वह है वैसा ही
स्वीकार कर लेते हैं तब भीतर से कृतज्ञता का भाव जगता है और मन में जगत के प्रति कोई
द्वेष नहीं रहता.
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति 102वां जन्म दिवस : वीनू मांकड़ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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