Sunday, April 14, 2019

दो के पार ही मिलता जीवन


जीवन विरोधाभासी है. यहाँ रात है तो दिन भी है, सुख के साथ दुःख भी है, इसी तरह प्रेम है तो घृणा भी है. पक्ष है तो विपक्ष भी है. हम सुख का वरण करना चाहते हैं, और दुःख से बचना चाहते हैं, लेकिन जीवन का यह नियम है कि एक के साथ दूसरा स्वतः ही मिलता है. यदि दुःख से बचना है तो सुख का भी त्याग करना होगा, घृणा से बचना है तो प्रेम का भी मोह छोड़ना होगा. जगत को साक्षी भाव से देखकर स्वयं को द्वन्द्वों से ऊपर उठाना ही साधना है. रात और दिन दोनों से ऊपर संध्या काल है, जिसका बहुत महत्व शास्त्रों में गाया गया है. सुख-दुःख दोनों से ऊपर आनंद है, जो आत्मा का स्वभाव है. प्रेम व घृणा दोनों से ऊपर करुणा है, जिसकी आज जगत को बहुत आवश्यकता है. इसी तरह हर द्वंद्व के पार जाकर ही समाधान मिल सकता है.

2 comments:

  1. सत्य वचन ,गंभीर आध्यत्मिक चिंतन ,सादर नमस्कार

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  2. स्वागत व आभार !

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