जीवन एक पाठशाला है, जाने कितनी बार हम ये शब्द सुनते हैं. लेकिन इस पाठशाला का
शिक्षक कौन है, बिना शिक्षक के कोई विद्यार्थी चाहे वह कितना ही होशियार हो, नहीं
पढ़ सकता. जीवन की इस पाठशाला का शिक्षक हमारी चेतना है, हमारा जमीर. यदि वह स्वयं
ही सोया हुआ है तो जीवन लाख पाठ पढ़ाये हमारी समझ में कुछ नहीं आता. मोह के कारण न
जाने कितनी बार व्यक्ति दुःख उठाता है, किन्तु मोह किये बिना रह नहीं पाता.
अनावश्यक बोलने के कारण भी कितनी बार हमें पछताना पड़ता है पर हर विषय में अपनी राय
बताने का लोभ संवरण नहीं होता. यदि मन ही हमारा शिक्षक है तो ये भूलें बार-बार
होती रहेंगी. मन की गहराई में सुप्त चेतना जब जाग जाती है तभी हर अनुभव हमें आगे
ले जाने वाला होता है. जीवन में व्रत हो, तप हो और साधना का नियम हो, और मन में
श्रद्धा हो तब यह चेतना सहज ही जाग जाती है.
आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 13 अप्रैल 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति 125वां जन्म दिवस - घनश्याम दास बिड़ला और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
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