चित्त सत्व, रज व तम से बना है, जड़ है. चित्त में ज्ञान, क्रिया
और स्थिरता तीनों हैं. सत्व से ज्ञान होता है, रज से प्रवृत्ति होती है तथा तम से स्थिति
होती है. चित्त कार्य द्रव्य है, यह उत्पन्न हुआ है, नष्ट भी होगा. यह कार्य जगत
भी इन्हीं तीनों गुणों से बना है. भीतर जो संघर्ष चल रहा है वह जड़ और चेतन में
होता है. हर क्षण हम जो जान रहे हैं, वह चित्त के सत्व गुण के कारण है. जब इसमें
रजो या तमो गुण बढ़ा हुआ होता है, हम प्रामाणिक ज्ञान से दूर हो जाते हैं. समाधि का
लक्ष्य है सत्व गुण को बढ़ाना. चित्त की एकाग्र व निरुद्ध अवस्था में समाधि घटती
है. पतंजलि योग सूत्रों के आधार पर मुख्यतः समाधि दो प्रकार की है सम्प्रज्ञात व
असम्प्रज्ञात. वितर्क, विचार, आनन्द व अस्मिता अनुगत ये चार समाधियाँ सम्प्रज्ञात
के अंतर्गत आती हैं. वितर्क में स्थूल विषयों पर एकाग्रता रहती है. विचारानुगत में
सूक्ष्म का ज्ञान होता है. आनंद व अस्मिता में क्रमशः आनंद व स्वयं के होने का भान
होता है. जब सभी वृत्तियाँ रुक जाती हैं उसे असम्प्रज्ञात समाधि कहते हैं.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-04-2019) को "मतदान करो" (चर्चा अंक-3300) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'