परमात्मा को हम
सच्चिदानंद कहते हैं. सत्, चित् और आनन्द स्वरूप परमात्मा यूँ तो हर प्राणी के
अंतर में छुपा है. मात्र सत्ता के रूप में वह जड़-चेतन दोनों में है, चेतना के रूप
में सजीव प्राणियों में है और आनन्द के रूप में सच्चे संतों में प्रकट होता है. मानव
जीवन की सार्थकता इसी में है कि जीते जी उस चेतना का अनुभव करे जो दिव्य है,
स्वाधीन है, शांत है और प्रेम से भरी है. हमारे शास्त्र एक स्वर से उसी का बखान
करते हैं. अर्जुन को विषाद योग से निकलने के लिए कृष्ण उसी का उपदेश करते हैं. वही
शिव के रूप में कल्याणकारी है और शक्ति के रूप में उत्साहित करने वाली है. लहर
रूपी मन की चंचलता को विश्राम देने वाली सागर स्वरूप भी वही है. आकाश में उड़ते हुए खग को
आश्रय देने वाली नीड़ रूपी वह चेतना सदा ही हमारे भीतर है.
सही कहा
ReplyDeleteसटीक आत्म दर्शन।
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