Monday, April 22, 2019

घूंंघट के पट खोल रे


हमारे अस्तित्त्व में देह, प्राण, मन बुद्धि, स्मृति, और अहंकार हैं. इनमें से आत्मा के निकटतम रहने वाला अहंकार ही वह पर्दा है जो हमें शांति, आनंद और ज्ञान से दूर रखता है. हम सदा स्वयं को बड़ा सिद्ध करना चाहते हैं, बड़ी बातों में ही नहीं छोटी से छोटी बात में भी हमें दूसरे से पीछे रहना स्वीकार नहीं. हम स्वयं ही नहीं हमारी वस्तुएं, हमारी संतानें, हमारा घर, यानि हमारा सब कुछ, सबसे बेहतर हों, इसकी फ़िक्र हमें रहती है, रहनी भी चाहिए लेकिन हम उसका प्रदर्शन भी करते हैं और चाहते हैं कि इसके लिए लोग हमारी प्रशंसा करें. इस भागदौड़ में हम आत्मा से यानि स्वयं से दूर निकल जाते हैं. संत कहते हैं, एक बार स्वयं में टिकना जिसको आ जाता है, वह जान लेता है कि इस जगत में कोई दूसरा है ही नहीं. जब तक जगत के साथ आत्मीयता का भाव नहीं पनपेगा, जगत हमारा प्रतिद्वंदी ही जान पड़ेगा. स्वयं के भीतर जाकर जब एक आश्वस्ति भरी सुरक्षा का अनुभव हमें होता है, सारी दौड़ खत्म हो जाती है.

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-04-2019) को "किताबें झाँकती हैं" (चर्चा अंक-3315) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    पुस्तक दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत बहुत आभार !

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