जैसे मानव देह में
मस्तिष्क का मुख्य स्थान है, वैसे ही एक देश में संसद का. मस्तिष्क यानि बुद्धि,
जिस प्रकार का ज्ञान बुद्धि में होगा, वैसा ही निर्देश कर्मेन्द्रियों व
ज्ञानेन्द्रियों को मिलेगा. यदि बुद्धि सात्विक होगी तो आहार-विहार भी सात्विक
होगा, कर्म भी शुद्ध होंगे और शरीर स्वस्थ रहेगा. स्वस्थ का अर्थ है देह का मालिक
यानि आत्मा अपने आप में स्थित रहेगा, जिससे अनवरत ऊर्जा का प्रवाह देह, मन
इन्द्रियों को मिलता रहे. यदि देह अस्वस्थ होती है तो चेतना रुग्ण अंग में ही सिमट
जाती है और ऊर्जा का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है. इसी प्रकार यदि संसद में देश और
धर्म के प्रति समर्पित सांसद होंगे तो वैसा ही निर्देश अधिकारियों और जनता को
मिलेगा. यदि सांसद निष्ठावान होंगे तो विकास भी सही दिशा में और शीघ्र होगा. देश
समर्थ बनेगा, समर्थ का अर्थ है अपनी रक्षा करने में सक्षम और जनता के हर वर्ग को
एक सुंदर व स्वस्थ वातावरण प्रदान करने में सक्षम. यदि ऐसे व्यक्ति चुनकर आते हैं
जो दीर्घसूत्री हैं, उच्च आदर्शों के प्रति जिनके मन में सम्मान नहीं है, जो निज
हितों को देश से ऊपर रखते हैं तो विकास की गति अवेरुद्ध हो जाएगी. देश कमजोर
बनेगा. निर्णय हमें करना है कि हम चरित्रवान और कर्मठ लोगों को चुनें.
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-04-2019) को "रिश्तों की चाय" (चर्चा अंक-3311) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
- अनीता सैनी
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ReplyDeleteजब देश की बुद्धि रूपी इस संसद में चलचित्र के तारक तारिकाएँ बैठी हों, आपराधिक तत्व बैठा हो, दुश्चरित्रता बैठी हो तब उसे भ्रष्ट तो होना ही है और जब इस बुद्धि में देश को दास बनाने वाले बहिर्देशी भी बैठे हों तब इस देश के टुकड़े-टुकड़े होना भी निश्चित है.....
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