चुनावों का मौसम है, सभी
दल अपनी अपनी उपलब्धियों को गिना रहे हैं और तरह-तरह के वायदों से मतदाताओं को
लुभाने का प्रयत्न कर रहे हैं. पांच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण करने के बाद यदि कोई
नेता अपने क्षेत्र में पुनः वोट मांगने जाता है तो उसका काम ही यह तय करता है, वह
इस बार जीतेगा या नहीं. समय के अनुसार चलने वाले नेता को सम्मान भी मिलता है और
समर्थन भी, सामन्ती विचारधारा के दिन खत्म हुए, अब जनता का राज है और राजनीति में
उसी को जाना चाहिए जिसके भीतर सेवा करने का भाव हो. अब राजनीति को धर्म के अनुसार
चलना होगा. बदलते हुए समय में सच्चे, कर्मनिष्ठ और देशभक्त नेता ही राजनीति में
सफल हो सकते हैं. कितना विशाल है हमारा देश और कितने भिन्न विचारधारा के लोग यहाँ
निवास करते हैं, सभी को खुश करना एक नेता या पार्टी के लिए सम्भव नहीं है, लेकिन लोकतंत्र
में जितना हो सके सबको साथ लेकर काम करना होता है. भारत जैसे विशाल देश में जनता
भी कितने ही वर्गों में बंटी है, पर लोकतंत्र की कितनी महानता है कि सबके मत की
कीमत एक समान है. यहाँ हरेक नागरिक को वोट देने का अधिकार है और अपनी पसंद की
सरकार चुनने का भी.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (02-04-2019) को "चेहरे पर लिखा अप्रैल फूल होता है" (चर्चा अंक-3293) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अन्तर्राष्ट्रीय मूख दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !
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