अल्प से हमें सुख
नहीं मिलता, हमें अधिक की चाह है, किन्तु अधिक मिलने पर और अधिक की चाह खत्म नहीं
होती. इसलिए संत कहते हैं हम अल्प से संतुष्ट होना सीख जाएँ तो अधिकतम से मिलने
वाले आनंद को महसूस कर सकते हैं. जीवन का गणित भौतिक गणित से उल्टा है. यहाँ सब
कुछ छोड़कर हम सब कुछ पा सकते हैं. संसार में बहुत कुछ पाकर भी कुछ नहीं पाया, ऐसा भी
अनुभव कर सकते हैं. मानव के लिए जीवन में सबसे बड़ी संपदा है मन का उत्साह,
उत्साहित व्यक्ति अपना रास्ता खोज ही लेता है और जगत को उससे क्या लाभ मिल सकता
है, इसके विषय में चिन्तन करता है. जिसके जीवन में जड़ता है, वह स्वयं का लाभ भी
नहीं कर पाता, वह लोभी हो जाता है. लोभ ही हिंसा को जन्म देता और अंततः दुःख में
ले जाता है. अंतर में सेवा का भाव ही व्यक्ति को उदार बनता है और एक दिन अनंत प्रेम
का फल उसके जीवन में लगता है. ऐसा साधक अस्तित्त्व के प्रति कृतज्ञ होकर उसके
साथ एकत्व का अनुभव भी कर सकता है.
बहुत बहुत आभार !
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