समय की धारा अपनी
सहज गति से बहती जाती है. कोई उसके तट पर बैठ कर भी प्यासा रहे तो यह उसकी भूल है.
जीवन का हर पल अपने भीतर एक सम्भावना को व्यक्त करने की क्षमता रखता है. कभी हम उस
पल को पहचान लेते हैं और स्वयं के भीतर उस तृप्ति को महसूस करते हैं जो मन को
अभीप्सित है. अक्सर हम समय को व्यर्थ ही गुजर जाने देते हैं. ऐसा नहीं है कि वह
तृप्ति कोई ऐसी वस्तु है जिसे हम सहेज कर रख सकते हैं, पर जो पल हम सजगता के साथ
जीते हैं वे भविष्य के लिए एक थाती बनकर हमारे साथ हो लेते हैं. जो समय यूँही चला
जाता है वह खुले हुए नल से नाली में बहते पानी की तरह ही बह जाता है, उसका कोई प्राप्य
नहीं है. सृष्टि में प्रतिपल कुछ न कुछ घट रहा है, मानव को छोड़कर सभी एक यज्ञ में
अपनी आहुतियां डाल रहे हैं. हमें भी अपने हिस्से का योगदान इसमें करना है, यह भाव
बना रहे तो प्रकृति उसके लिए साधन जुटा ही देती है.
जो पल हम सजगता के साथ जीते हैं वे भविष्य के लिए एक थाती बनकर हमारे साथ हो लेते हैं. जो समय यूँही चला जाता है वह खुले हुए नल से नाली में बहते पानी की तरह ही बह जाता है
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर पंक्ति ,सही कहा आपने ,सादर स्नेह