५ मार्च २०१९
जीवन कितना छोटा है, यह बात उससे बेहतर कौन जान सकता है जिसके जीवन की शाम हो गयी
है और किसी भी पल घोर अंधकार घट सकता है. जीवन कितना बहुमूल्य है यह मृत्यु शैया
पर पड़े किसी व्यक्ति की आँखों में स्पष्ट झलकता है. हम अभी न तो इतने वृद्ध हुए
हैं और न ही इतने अस्वस्थ, इसलिए अपने जीवन के अनमोल क्षणों को यूँही व्यर्थ के
वादविवाद में उलझाये चले जा रहे हैं. हमारे शास्त्रों में सत्य की तुलना रत्नों और
हीरों से की गयी है, क्योंकि जगत की दृष्टि में वे अति कीमती हैं, किन्तु सत्य
शाश्वत होने के कारण उनसे भी कीमती है और उस सत्य का अनुभव किये बिना एक और जन्म
गंवा देना उन दुखों को पुनः निमन्त्रण देना है जिनका अनुभव इस जन्म में हम अनेक
बार कर चुके हैं. यदि कोई एक बार निश्चय करता है कि इस क्षण से आगे उसका हर पल अपने
भीतर के उस सत्य की खोज में सहायक होगा जिसकी आराधना ऋषि-मुनि करते आये हैं, तो
इसी क्षण से जीवन में एक अनोखी सी सुवास भरने लगती है. दिशाएं भी उसका भान कराने
में उत्सुक हैं और हवाएं भी, बादल और यह पावन भूमि भी. जगत जिस राह चलता आ रहा है
चलता रहेगा, पर एक साधक को तो इसी कोलाहल में उस अदृश्य की वीणा के स्वर सुनने
हैं.
आपका ये लेख पढ़ने के बाद बस यही कह सकता हूँ कि जीवन बहुत अनमोल है और हम सब को इस मनुष्य जीवन में कुछ अच्छे कर्म करने चाहिए । अच्छा लिखा है आपने।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
स्वागत व आभार नितीश जी !
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