फागुन माह के आगमन के साथ ही ह्रदयों में इन्द्रधनुष बनने-संवरने
लगते हैं, और पूर्णिमा आते-आते दिलों में उमंग बढ़ जाती है. इस बासंती रुत में प्रकृति
अपने पूरे श्रृंगार के साथ खिल जाती है. पलाश, कंचन, सेमल और अशोक के वृक्ष
कुसुमों का परिधान पहन लेते हैं. नींबू और आम के वृक्ष जैसे साल भर से संग्रहित
हुआ अपना सुरभि स्रोत उड़ाने को व्याकुल हैं. हवा में एक मदमस्त कर देने वाली सुगंध
अनायास ही समाई रहती है. बगिया रंग-बिरंगे फूलों से सजी है, सभी मानो एक-दूसरे से
होड़ ले रहे हैं. खेतों में गेहूँ और सरसों झूमती-इठलाती नजर आती हैं. फागुनी हवा
चलती है तो लोकमन भी संकोच की बेड़ियाँ तोड़कर ढोल-मंजीरे व झांझ की ताल पर थिरकने को
आतुर हो उठता है. कण-कण से वसंत राग सहज ही फूटने लगता है. ऐसे में होलिकादहन के
उत्सव में जो हृदय के सारे वैर और द्वेष भाव को जला देता है, उसके अंतर में ही आह्लाद
सुरक्षित रहता है. उसी आह्लाद को उल्लास पूर्ण वातावरण में एक-दूसरे के साथ बांटने
का नाम होली है.
बहुत सुंदर ... ,आप को भी होली की हार्दिक बधाई ,अनीता जी
ReplyDeleteस्वागत व आभार कामिनी जी !
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 19/03/2019 की बुलेटिन, " किस्मत का खेल जो भी हो “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
Deleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteनयी पोस्ट: मंदिर वहीं बनाएंगे।
iwillrocknow.com
स्वागत व आभार !
Deleteरंगों का त्यौहार शुभ हो।
ReplyDeleteआपको भी होली मुबारक !
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