जैसे पैर में कोई काँटा लगा हो तो पीड़ा का अहसास दिलाता है, वैसे ही मन में जगी कोई
भी कामना हमारे मन को व्यथित कर देती है. यदि हम उस पीड़ा से बचने के लिए कामना को
पूरा कर लेते हैं तो उस क्षण तो एक सुख का
अहसास होता है पर संस्कार रूप में वह कामना मन में अपना अधिकार जमा लेती है. दुःख
से बचने के लिए पुनः-पुनः उसे पूर्ण करते रहना होगा, किन्तु हर बार पहले से ज्यादा
गहरा संस्कार मन पर चढ़ता जायेगा. व्यसन इसी तरह व्यक्ति को अपना शिकार बना लेते
हैं. यदि हम उस कामना को पूर्ण नहीं करते और उस पीड़ा को समता भाव से सह लेते हैं तो
उस संस्कार को मिटाने के लिए मानो हमने जल बहाया. पहली बार में वह संस्कार मिटने
वाला नहीं है किन्तु बार-बार मन को दृढ़ता
से रोका तो एक दिन ऐसा अवश्य आएगा कि वह कामना नहीं जगेगी, जगी भी तो मन को पकड़ेगी
नहीं.
बिलकुल सही ,बहुत बढ़िया .....
ReplyDeleteस्वागत व आभार कामिनी जी !
Deleteमन के व्यसनों को दूर करने के लिए इच्छाओं पर काबू रखना सबसे जरूरी है। सुंदर पोस्ट।
ReplyDeleteनयी पोस्ट: मुकम्मल मोहब्बत की दास्तान।
iwillrocknow.com
स्वागत व आभार !
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमुश्किल है पर असंभव नहीं है। सुन्दर।
ReplyDeleteसुशील जी की बातों से मै भी सहमत हूँ ,
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन फाउंटेन पैन का शौक और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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