पुनर्जन्म और कर्म फल
सिद्धांत हिन्दू धर्म की बुनियाद में है जो इसे विशिष्ट बनाते हैं. इनके कारण ही यह
धर्म मानव को परम स्वाधीनता भी प्रदान करता है. परमात्मा यहाँ किसी शासक के रूप
में न होकर मात्र द्रष्टा है, जिसकी उपस्थिति मात्र से सब कुछ हो रहा है. कोई
व्यक्ति जैसे कर्म करता है उसके अनुसार ही उसे फल मिलता है और मन पर संस्कार के
रूप में उस कर्म की जो छाप पड़ जाती है, वह उसे वैसा ही कर्म भविष्य में करने के
लिए प्रेरणा भी देती है. इसीलिए बचपन से शुभ संस्कारों को देने की बात कही जाती
है. जो अशुभ संस्कार मन पर गहरे हो जाते हैं, उन्हें बदलने के लिए योग साधना से
बढ़कर कोई उपाय नहीं है. यदि कोई आत्मा की अमरता में विश्वास करता है तो उसे इन
संस्कारों को बदल कर अपने जीवन को निर्मल बनाने की पूर्ण स्वतन्त्रता है. धर्म,
अर्थ, काम व मोक्ष इन चार पुरुषार्थों के द्वारा कोई भी परम अवस्था को प्राप्त कर
सकता है.
तब तक जब तक धर्म को जीवन जीने की पद्यति तक रहने दिया जाये।
ReplyDeleteस्वागत व आभार ! जीवन जीने की पद्धति में सब कुछ तो आ गया
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