जीवन को यदि पूर्णता
तक पहुँचाना है, तो हमें अपने स्रोत को ढूँढना होगा. यदि हमारा स्रोत पूर्ण है तभी
हमारा लक्ष्य भी श्रेष्ठ हो सकता है. हम कहते हैं कमल कीचड़ से निकलता है, लेकिन यह
भूल जाते हैं कि कमल का जन्म अपने बीज से होता है, बीज अपने आप में पूर्ण है इसलिए
कमल भी पूर्ण है, चाहे उसके आस-पास पंक ही क्यों न हो. देह पंचतत्वों से बनी है,
और चेतना परम चैतन्य से. तत्व पूर्ण हैं और चैतन्य भी. अपने भीतर इनका अनुभव ही
हमें पूर्णता का अनुभव कराता है. योग का मार्ग इसी और ले जाता है. मन को साधना के
पथ पर ले जाना एक चुनौती है, जिसका सामना साधक को करना होता है. अपने भीतर झाँकने
पर पहले-पहल पीड़ा भी होगी और बेचैनी भी, लेकिन जैसे-जैसे मन गहराई में जाता है,
समाधान मिलने लगता है.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सूरदास जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
Deleteसही बात!
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteबहुत सुंदर विचार।
ReplyDeleteमन को साधना के पथ पर ले जाना सचमुच एक चुनौती है। निरंतर अभ्यास से ही यह हो सकेगा।
स्वागत व आभार मीना जी, अभ्यास के बिना गति नहीं !
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