योग के साधक का लक्ष्य समाधि अवस्था प्राप्त करना
है, समाधि अर्थात समाधान ! जब-जब हम कुछ
जानते हैं, उस समय समाधान अवस्था में होते हैं. यह चित्त का वह धर्म है जो उसकी
सभी भूमियों में रहता है. चित्त का अर्थ है, अंतःकरण यानि मन, बुद्धि, चित्त व
अहंकार ! मन से तर्क-वितर्क करते हैं, बुद्धि से निर्णय लेते हैं, यहाँ चित्त से
तात्पर्य है स्मृति. संस्कार भी चित्त में रहते हैं, तथा अहंकार से अहंता का बोध होता है. चित्त की
पांच भूमियाँ होती हैं, क्षिप्त, मूढ़, एकाग्र, विक्षिप्त और निरुद्ध. क्षिप्त चंचल
अवस्था है जिसमें मन में रजो व तमो दोनों गुण होते हैं. इसमें विवेक की कमी होती
है. मूढ़ अवस्था में तमोगुण अधिक होता है. यह आलस्य, तंन्द्रा से भरी विवेक शून्य
अवस्था है. विक्षिप्त अवस्था में मन एक विषय में रुक जाता है, रजोगुण तथा तमोगुण
बने रहते हैं. एकाग्र अवस्था में सतोगुण बढ़ जाता है, मन एक ही विषय पर स्थिर रहता
है. निरुद्ध अवस्था में चित्त स्थिर हो जाता है. पूरी तरह से वृत्तियाँ रुक जाती हैं
सुन्दर
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 04/04/2019 की बुलेटिन, " चल यार धक्का मार , बंद है मोटर कार - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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