Thursday, February 16, 2012

मन लौट के भीतर आये


दिसम्बर २०१२ 
जिसे अपने आप का ज्ञान नहीं है, उसे ही अभिमान, ममता, लोभ, मोह आदि के कारण दुःख होते हैं. मन का यह नाटक तब तक चलता रहता है जब तक हम अपने शुद्ध स्वरूप में स्थित नहीं होते. हमारा अहं तभी तक है जब तक हम स्वयं को शरीर से भिन्न व मन से अलग नहीं देखते. ऐसा तभी संभव है जब हम स्वयं के कण-कण से परिचित हों, सूक्ष्म परिवर्तनों के प्रति सजग रहें. कब क्या मन में उठ रहा है इसे जानते रहें. जब सजगता खो जाती है तब संसार मन पर अपना अधिकार जमा लेता है. जब सजग रहते हैं तब भीतर से एक रस की धार सदा बहती रहती है उसमें आप्लावित रहते हैं. मन बाहर भी जुड़ा हुआ है और भीतर भी बुद्धि से जुड़ा है. जब वह भीतर लौट आता है नमः हो जाता है.

7 comments:

  1. सुन्दर कथन..
    kalamdaan.blogspot.in

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  2. जब सजगता खो जाती है तब संसार मन पर अपना अधिकार जमा लेता है.
    pranaam didi. hamesha sajag rakhne ke liye !

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  3. बहुत सारगर्भित सन्देश...

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  4. नीतिगत , सुन्दर आलेख.

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  5. दिसम्बर २०१२
    जिसे अपने आप का ज्ञान नहीं है, उसे ही अभिमान, ममता, लोभ, मोह आदि के कारण दुःख होते हैं. मन का यह नाटक तब तक चलता रहता है जब तक हम अपने शुद्ध स्वरूप में स्थित नहीं होते. हमारा अहं तभी तक है जब तक हम स्वयं को शरीर से भिन्न व मन से अलग नहीं देखते. ऐसा तभी संभव है जब हम स्वयं के कण-कण से परिचित हों, सूक्ष्म परिवर्तनों के प्रति सजग रहें. कब क्या मन में उठ रहा है इसे जानते रहें.
    अनुकरणीय .समझेगा वाही जो जीवन को दृष्टा भाव से देखने की क्षमता रखता है .

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  6. ऋतु जी, आनंद जी , वीरू भाई जी, कैलाशजी, केवल जी, व देवेन्द्र जी, आप सभी का स्वागत व आभार !

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