जनवरी २००३
अन्नमय कोष की गहराई में प्राणमय कोष है. मनोमय शरीर अंतरआत्मा के करीब है, इसके भीतर विज्ञान मय कोष तथा आनन्दमय कोष है. उसके अंत में हम ज्योति स्वरूप हैं, वही हमारी सच्ची पहचान है. जीवन रहते इन पांचों शरीरों को सबल व सुदृढ़ रखते हुए अपने सत्य स्वरूप तक जाना है. अपने-अपने दुर्गों से बाहर निकलना है. हमारे भीतर जो चैतन्य है, वह हर पल बुला ही नहीं रहा है, मार्ग भी वही बताता है. वह हमें नितांत एकांतिक प्रेम करता है, अहैतुक प्रेम. पर उसके प्रेम को रखने के लिये मन के पात्र को शुद्ध करना होगा, अमृत स्वर्ण कुम्भ में ही रखा जाता है. जीवन में संयम, परमार्थ, तथा ध्यान हमें निर्दोष बनाता है, मिथ्या अहंकार से मुक्त करता है. तब उससे दूरी नहीं रह जाती
सद विचार ... शुक्रिया ..
ReplyDeletebahut achche sad vichar amrat ko swarn kalash arthat shudd man ke bheetar hi rakhna chhiye.path pardarshan karti hui rachna.
ReplyDeletesunder vichar ..
ReplyDeleteabhar .
जीवन में संयम, परमार्थ, तथा ध्यान हमें निर्दोष बनाता है,
ReplyDeleteमिथ्या अहंकार से मुक्त करता है.
तब उससे दूरी नहीं रह जाती
सद विचार
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