जनवरी २००३
जब जीवन का उद्देश्य मोक्ष हो तब हर वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति का सद्पुयोग होता है. भीतर का सुख पाने की कला आ जाती है. तब मन बाहर से सुख नहीं खोजता, जो भी उसे मिल जाता है उसमें ही आनंद मनाता है. आनंद ही हमारा मूल स्वभाव है, ज्ञान हमें इससे परिचित कराता है और तब यह संसार हमें खेल लगने लगता है. यह जीवन हमें इसलिए मिला है कि अपने भीतर के खजाने को पाकर बाहर इसे लुटायें न कि बाहर वस्तुओं का संग्रह करते फिरें और बाद में उन्हें छोड़कर निराश होकर मर जाएँ. हमारा जीवन एक उत्सव है कभी न समाप्त होने वाला उत्सव, जिसमें हमें उस सच्चिदानन्द का साथ मिला है. आनंद घन हमें ज्ञान प्रदान करता है, उसकी कृपा का पात्र बनते ही वह हमें बुद्धियोग प्रदान करता है. वही प्रियतम है, इस जीवन का आधार है.
'आनंद ही हमारा मूल स्वभाव है, ज्ञान हमें इससे परिचित कराता है और तब यह संसार हमें खेल लगने लगता है.'
ReplyDeleteइस सूक्ति वाक्य को आत्मसात कर लें फिर पीड़ा है ही कहाँ...
आपके अनमोल वचन पढ़ना हमेशा से बड़ा सुकून देता रहा है!
सादर!
आनंद....
ReplyDeleteअद्भुत शब्द है...!
अनीता जी
ReplyDeleteसटीक कहा आपने...ज्ञान हमें हमारे मूल स्वाभाव तक ले जाता है जो ध्यान से संभव है..सिर्फ पुस्तक ज्ञान नहीं ध्यान से ज्ञान की प्राप्ति होती है ...
यह जीवन हमें इसलिए मिला है कि अपने भीतर के खजाने को पाकर बाहर इसे लुटायें न कि बाहर वस्तुओं का संग्रह करते फिरें और बाद में उन्हें छोड़कर निराश होकर मर जाएँ.
सत्य वचन ...
सुन्दर संग्रहणीय विचार .
ReplyDeleteउत्तम विचार!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर बात कही आपने।
ReplyDeleteबधाई।
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..की-बोर्ड वाली औरतें।