Wednesday, February 22, 2012

चेतनत्व बिखरा चहुँ ओर


दिसंबर २००२ 
कभी किसी डाली से लगे फूल को सहला कर देखें तो लगता है वह हमारे स्पर्श को महसूस कर रहा है. जीवन कितना अद्भुत है...हर वस्तु में चेतना है, एक ही चेतना का सभी में स्पंदन है. हम वस्तुओं को उनके वास्तविक स्वरूप में देखें तो सब कुछ कितना सुंदर है. एक नंग-धडंग, मिट्टी से सना  अनपढ़ बच्चा  भी अपने भीतर वही चेतना छिपाए है, असीम सम्भावनाओं का भंडार...हमारा शरीर, मन, बुद्धि भले ही सीमा से बंधे हों, पर हमारी आत्मा यानि जो हम वास्तव में हैं, वह अपरिमित है. उसके सान्निध्य में हम भी असीम हैं, जीवन मुक्त, चिन्मय और शाश्वत !

2 comments:

  1. हम्म ..नज़रें चाहिए सुन्दरता को निहारने के लिए..उस चेतना का जागरूक होना आवश्यक है उन नज़रों के लिए..ये हर किसे के बस की बात नहीं ..
    kalamdaan.blogspot.in

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  2. आपका सानिध्य मन उजला कर देता है ..
    आभार अनीता जी ...!!

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