दिसम्बर २००२
आधि, व्याधि और उपाधि के रोग से हम सभी ग्रसित हैं जो क्रमशः मन, तन, और धन के रोग हैं. इनका इलाज समाधि है. समाधि में मन समाहित रहे तो सारे रोग विलीन हो जाते हैं, क्रोधित होते हुए भी भीतर कुछ ऐसा बचा रहता है जिसे क्रोध छू भी नहीं सकता, भीतर एक ठोस आधार पर हम खड़े रहते हैं चट्टान की तरह दृढ़. हमें कोई भयभीत नहीं कर सकता न किसीको हमसे भय रहता है. वास्तविक जीवन तभी शुरू होता है. तब देह की उपयोगिता इस आत्मा को धारण करने हेतु ही नजर आती है, मन सात्विक भावों की आश्रय स्थली बनकर रह जाता है. सभी नकारात्मक विचार तथा द्वंद्व को हटकर परम की शुभ्र विमल मूर्ति की स्थापना तब मन में होती है. उसके बाद तो वह स्वयं ही आकर हमारा हाथ थाम लेता है.एक बार उसे अपना मान लें तो फिर वह स्वयं से अलग नहीं होने देता.
अरे सच कहा दी आपने ... मैंने जल्दी ही अनुभव किया है कि क्रोध में भी होश रहता है ...और इस बात पर नज़र पड़ते ही धीरे धीरे सब शांत होने लगता है.
ReplyDeleteएक बार उसे अपना मान लें
ReplyDeleteतो फिर वह स्वयं से अलग नहीं होने देता.
sundar bhaw
its true... only need to feel this.
ReplyDeleteसमाधि में मन समाहित रहे तो सारे रोग विलीन हो जाते हैं
ReplyDeleteshashwat wichar.badhai.
आप कि पोस्ट पढ़कर यही लगता है कि मेरी माँ खाली समय में मेरे साथ बैठकर ये सब बता रहीं हों. बहुत आभार
ReplyDeleteLife is Just a Life
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आनंद जी, रमाकांत जी, नीरज जी, यादव जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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