Tuesday, February 7, 2012

अपना उसे बनाएँ हम


दिसम्बर २००२ 
आधि, व्याधि और उपाधि के रोग से हम सभी ग्रसित हैं जो क्रमशः मन, तन, और धन के रोग हैं. इनका इलाज समाधि है. समाधि में मन समाहित रहे तो सारे रोग विलीन हो जाते हैं, क्रोधित होते हुए भी भीतर कुछ ऐसा बचा रहता है जिसे क्रोध छू भी नहीं सकता, भीतर एक ठोस आधार पर हम खड़े रहते हैं चट्टान की तरह दृढ़. हमें कोई भयभीत नहीं कर सकता न किसीको हमसे भय रहता है. वास्तविक जीवन तभी शुरू होता है. तब देह की उपयोगिता इस आत्मा को धारण करने हेतु ही नजर आती है, मन सात्विक भावों की आश्रय स्थली बनकर रह जाता है. सभी नकारात्मक विचार तथा द्वंद्व को हटकर परम की शुभ्र विमल मूर्ति की स्थापना तब मन में होती है. उसके बाद तो वह स्वयं ही आकर हमारा हाथ थाम लेता है.एक बार उसे अपना मान लें तो फिर वह स्वयं से अलग नहीं होने देता.

6 comments:

  1. अरे सच कहा दी आपने ... मैंने जल्दी ही अनुभव किया है कि क्रोध में भी होश रहता है ...और इस बात पर नज़र पड़ते ही धीरे धीरे सब शांत होने लगता है.

    ReplyDelete
  2. एक बार उसे अपना मान लें
    तो फिर वह स्वयं से अलग नहीं होने देता.
    sundar bhaw

    ReplyDelete
  3. its true... only need to feel this.

    ReplyDelete
  4. समाधि में मन समाहित रहे तो सारे रोग विलीन हो जाते हैं
    shashwat wichar.badhai.

    ReplyDelete
  5. आप कि पोस्ट पढ़कर यही लगता है कि मेरी माँ खाली समय में मेरे साथ बैठकर ये सब बता रहीं हों. बहुत आभार
    Life is Just a Life
    My Clicks
    .

    ReplyDelete
  6. आनंद जी, रमाकांत जी, नीरज जी, यादव जी आप सभी का स्वागत व आभार !

    ReplyDelete