Tuesday, February 21, 2012

श्रद्धा ही मंजिल है


दिसम्बर २००२ 
हमारी कथनी और करनी में अंतर जितना अधिक होगा मन में संशय का कुहरा भी उसी अनुपात में बढ़ेगा. कोई घटना कितनी देर तक मन पर प्रभाव डालती रहती है इससे भी दम्भ के घने होने का पता चलता है. ऐसे में कोई सहायता कर सकता है तो वह है श्रद्धा...वही इस संशय को दूर कर सकती है. वही हमें अपने स्वभाव में टिकाती है तब दिखावे या आडम्बर की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती. तब प्रार्थना उठने से पूर्व ही सुन ली जाती है. जीवन का लक्ष्य एक हो, राह एक हो, मन में दृढ़ता हो, तभी मंजिल मिलेगी. अंतर में प्रेम का झरना सूखने न पाए, रिसता रहे, बूंद-बूंद ही सही, संवेदना भीगी रहे, वाणी में रुक्षता न आये न आँखों में परायापन, प्रेम सभी पर समरस रूप से बरसे तब ही मानना चाहिए कि श्रद्धा अटूट है. 

3 comments:

  1. जीवन का लक्ष्य एक हो, राह एक हो, मन में दृढ़ता हो, तभी मंजिल मिलेगी. अंतर में प्रेम का झरना सूखने न पाए, रिसता रहे, बूंद-बूंद ही सही, संवेदना भीगी रहे, वाणी में रुक्षता न आये न आँखों में परायापन, प्रेम सभी पर समरस रूप से बरसे तब ही मानना चाहिए कि श्रद्धा अटूट है.


    बिलकुल ठीक कहा आपने अनीता जी....

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  2. सचमुच ..श्रद्धा के भी नीयम हैं ..अन्यथा वो श्रद्धा नहीं ढकोसला मात्र है ..
    kalamdaan.blogspot.in

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  3. shraddha bina ...man ,jeevan sab soona hai ....

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