जनवरी २००३
परमात्मा प्रेम, ज्ञान और आनंद का अखंड स्रोत है. सच्चिदानंद है, आत्मा और उसमें कोई गुणात्मक भेद नही है, जब यह भावना दृढ़ हो जाती है तब कण-कण में वही दिखने लगता है. साधक सहज स्वरूप में टिकने लगता है. एक अनिवर्चनीय शांति उसे चारों ओर से घेर लेती है, और संसार एक क्रीडास्थली मात्र लगने लगता है. इसे न केवल जानना या मानना है बल्कि देखना है, द्रष्टा भाव में आये बिना अज्ञान नहीं मिटता. नियत कर्म को निष्ठा के साथ करते हुए, सदगुरु का आश्रय लेकर साधक साधना के पथ पर एक अनोखे लोक में पहुँच जाता है. धर्म धारण करने पर ही रक्षा करता है. जगत के सागर को पार करने के लिये तैरने की कला ही साधना है. स्वयं में आया परिवर्तन ही उसके आसपास के वातावरण को शुद्ध कर देता है. जीवन जो क्षणभंगुर है एक अंतहीन उत्सव बन जाता है. अहं गल जाता है, समपर्ण जीवन की रीत बन जाती है, तब भीतर भक्ति का उदय होता है.
प्रेम, ज्ञान और आनंद का अखंड स्रोत है. सच्चिदानंद है,
ReplyDeleteद्रष्टा भाव में आये बिना अज्ञान नहीं मिटता.
EK PARAM SATYA.
AAP SADAIW AISA HI LIKATI RAHEN ISHWAR AAP PAR KRIAPLU RAHEN .PRANAM.
बहुत अच्छी प्रस्तुति,सुंदर आलेख के लिए बधाई,.....
ReplyDeleteNEW POST...काव्यांजलि...आज के नेता...
NEW POST...फुहार...हुस्न की बात...
JB TK AHANKAR RAHEGA TB TK PREM NAHI UTPANN HO SAKATA ....PREM = PARE+MAY
ReplyDeleteBEHAD PRABHAVSHALI POST ...ABHAR.
ये पश्यति ते योगिनः। परम ज्ञानमयी लेख।
ReplyDelete