नवम्बर २०१२
दो मार्ग हर वक्त हमारे सामने होते हैं एक है श्रेय और दूसरा है प्रेय. जो पहले कठिन हो पर बाद में लाभकारी हो वही श्रेय है और जो इस समय सुखकर हो पर बाद में जिसका परिणाम दुखकारी हो वह प्रेय है. प्रेय के मार्ग पर भी काँटे होते है पर फूलों से ढके होते हैं, मोह और अहंकार इस प्रेय के मार्ग के साथी हैं, जबकि सद्विचार श्रेय के मार्ग के साथी हैं. विवेक भीतर जगे तभी श्रेय की चाह उठती है. विवेक जगने पर भीतर मात्र करुणा रह जाती है, आध्यात्मिक जीवन का अर्थ ही है स्नेह भरा जीवन. संसार से भागना नहीं है बल्कि अपने अंतर में डूबकर प्रेम भरे हृदय से संसार की तरफ आना है.
अपने अंतर में डूबकर प्रेम भरे हृदय से
ReplyDeleteसंसार की तरफ आना है.
sargarbhit post pranam
SHUBH DIN
अपने अंतर में डूबकर प्रेम भरे हृदय से संसार की तरफ आना है.
ReplyDeletebahut sahi baat ...
abhar ...