Thursday, April 12, 2012

रहना असली घर में है


फरवरी २००३ 
संसार एक क्रीडास्थल है, जहाँ खेलते समय हमें ध्यान रखना है कि कोई ऐसा स्थान भी है जहाँ हम विश्राम लेते हैं, पुष्टि व तुष्टि पाते हैं. वह हमारा असली घर है. उस खेल में सफलता है मन की प्रसन्नता, तृप्ति और संतोष. भीतर की कंपकपी, दर्द, पीड़ा तब चले जाते हैं जब हमारे मन में छिपा प्रेम का स्रोत हमें मिल जाता है. जीवन में जो भक्ति घटित होती है वही वास्तविक शक्ति है. भजन गाते समय जब अंग-अंग भजन मय हो जाये तब भीतर आरती घटित होती है. हमारी आत्मा का चरित्र प्रकट होने लगता है. जीवन में सत्य का सँग साथ हो, स्वध्याय हो, सेवा हो और साधना हो तो ही खेल पूर्ण होता है. हमारे सम्पर्क में आने वाले भी हमारे लिये प्रसन्नता का स्रोत बन जाते हैं क्योंकि उनके साथ हमें अपना प्रेम व आनंद बाँटने का अवसर मिलता है.  

7 comments:

  1. संसार निश्चय ही एक क्रीड़ास्थल है ..और हम उसकी आगया अनुसार खेल खेल रहे हैं..!
    kalamdaan

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  2. बिल्कुल सही कहा....आभार।

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  3. जीवन में सत्य का सँग साथ हो, स्वध्याय हो, सेवा हो और साधना हो तो ही खेल पूर्ण होता है.
    badhiyaa vichaar pravaah .

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  4. एक निर्वाण है आपकी सोच

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  5. जीवन में सत्य का सँग साथ हो, स्वध्याय हो,
    सेवा हो और साधना हो तो ही खेल पूर्ण होता है.
    THE TRUTH.

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  6. आप सभी का हृदय से आभार !

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