फरवरी २००३
संसार एक क्रीडास्थल है, जहाँ खेलते समय हमें ध्यान रखना है कि कोई ऐसा स्थान भी है जहाँ हम विश्राम लेते हैं, पुष्टि व तुष्टि पाते हैं. वह हमारा असली घर है. उस खेल में सफलता है मन की प्रसन्नता, तृप्ति और संतोष. भीतर की कंपकपी, दर्द, पीड़ा तब चले जाते हैं जब हमारे मन में छिपा प्रेम का स्रोत हमें मिल जाता है. जीवन में जो भक्ति घटित होती है वही वास्तविक शक्ति है. भजन गाते समय जब अंग-अंग भजन मय हो जाये तब भीतर आरती घटित होती है. हमारी आत्मा का चरित्र प्रकट होने लगता है. जीवन में सत्य का सँग साथ हो, स्वध्याय हो, सेवा हो और साधना हो तो ही खेल पूर्ण होता है. हमारे सम्पर्क में आने वाले भी हमारे लिये प्रसन्नता का स्रोत बन जाते हैं क्योंकि उनके साथ हमें अपना प्रेम व आनंद बाँटने का अवसर मिलता है.
संसार निश्चय ही एक क्रीड़ास्थल है ..और हम उसकी आगया अनुसार खेल खेल रहे हैं..!
ReplyDeletekalamdaan
yes its true.
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा....आभार।
ReplyDeleteजीवन में सत्य का सँग साथ हो, स्वध्याय हो, सेवा हो और साधना हो तो ही खेल पूर्ण होता है.
ReplyDeletebadhiyaa vichaar pravaah .
एक निर्वाण है आपकी सोच
ReplyDeleteजीवन में सत्य का सँग साथ हो, स्वध्याय हो,
ReplyDeleteसेवा हो और साधना हो तो ही खेल पूर्ण होता है.
THE TRUTH.
आप सभी का हृदय से आभार !
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