मिथ्या अहंकार के कारण हम स्वयं को एक लघु इकाई मान बैठते हैं, पर जब हृदय प्रेम से परिचित होता है तो अहंकार गल जाता है. सभी अपने लगते हैं. सभी के भीतर वही एक चैतन्य दीख पड़ता है. हम स्वयं को विशाल अनुभव करते हैं. यह भाव अनोखा है. कोई सुंदर दृश्य देखकर एक क्षण के लिये श्वास भी थम जाती है, कभी किसी के आँसू देखकर जो सूक्ष्म भाव मन में उठते हैं, उस कान्हा की कोई कथा याद आने पर कभी मुस्कान तो कभी आँखों से जल बहता है, ये सभी प्रेम के ही रूप हैं. यह संसार उसकी लीला है, यह सोचकर जो कौतूहल होता है, इस विशाल ब्रह्मांड को अरबों, नक्षत्रों, और नाना जीवों को धरा पर चलते-फिरते देखकर कितना अचरज होता है, फिर हमारा स्वयं का मन..एक क्षण में कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है. आत्मा की सुंदरता, जो ध्यान में दीख पड़ती है. हमारे भीतर का संगीतमय सुंदर संसार...यह सब कितना विचित्र है. और कितने भाग्यशाली हैं हम कि यह सब देख पा रहे हैं.
कितनी सच्ची बात लिख दी ....आपकी प्रकाशमयी लेखनी ...मन उज्जवल कर देती है ....बहुत आभार अनीता जी ....
ReplyDeleteसुन्दरता चरों तरफ बिखरी पड़ी हैं कहीं न कहीं हमारी ही नज़र चूक जाती है ।
ReplyDeleteyes we are lucky to experience all that.
ReplyDeleteअहंकार की अगन जल्दी नहीं शांत होती
ReplyDeleteरश्मि जी, जिसने अहंकार को अगन जान लिया वह उसे मर्यादा में रखेगा आग से कौन जलना चाहता है.
Deleteसचमुच !! आज जब अपने बागीचे के फूल देखे तो मन प्रेम से भर गया उस प्रभु के लिए ..
ReplyDeletekalamdaan
ऐसा ही है न ऋतु जी...
Deleteजब हृदय प्रेम से परिचित होता है
ReplyDeleteतो अहंकार गल जाता है. सभी अपने लगते हैं.
sundar man ko chhunewali.
आपके इस अनूठे आलेख पर समयाभाव के कारण विस्तृत टिप्पणी बाद में करता हूँ
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