फरवरी २००३
प्रतिपल हमारे भीतर रामायण चल रही है. राम,
हमारी आत्मा का जन्म तब होता है, अर्थात हम स्वयं का अनुभव तब करते हैं जब दशरथ
यानि दस इन्द्रियों का मिलन कुशलता (कौशल्या) से होता है. जीवन में मैत्री (सुमित्रा),
और श्रद्धा(कैकेयी) होती हैं. श्रद्धा जब अटूट न रहे तो स्वयं से अलगाव हो जाता
है. बुद्धि रूपी सीता का हरण तब अहंकार रूपी रावण कर लेता है. श्वास-प्राणायाम (हनुमान) की सहायता से हम पुनः बुद्धि
का आत्मा से मिलन कराते हैं.
इसी तरह महाभारत का युद्ध भी लड़ा
जा रहा है. एक ओर लोभ आदि दुर्गुणों का प्रतीक दुर्योधन है तो दूसरी ओर सात्विकता का प्रतीक अर्जुन, आत्मा रूपी
कृष्ण उसके सारथि हैं. सदगुणों को जब वनवास मिलता है, दुःख उठाना ही पड़ता है पर अंत
में विजय सत्य की होती है. हमें प्रतिक्षण प्रेय तथा श्रेय में से चुनाव करना होता
है. यह चयन ही हमारे भविष्य की नींव रखता है.
बात तो सोलह आने सच है.रावण के दस सिर दिखाने का मतलब ही यही है.किसी भी मनुष्य के तो दस सिर हो नही सकते.हाँ,मनुष्य स्वयं को दस अवगुणों से जरूर राक्षस बना लेता है.
ReplyDeleteवाह वाह इस नज़रिए से तो कभी सोचा ही नहीं महाभारत के बिम्ब बहुत अच्छे लगे।
ReplyDeleteचयन ही हमारे भविष्य की नींव रखता है.
ReplyDeletesundar jiwan ka yatharth .
बहुत सुन्दरता से रामचरितमानस को जीवन में उतार दिया..!
ReplyDeleteदीदी, सदा जी, इमरान, रमाकांत जी, व रितु जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteऐसा तो प्रति पल होता है
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