फरवरी २००३
मृत्यु कितनी सृजनात्मक है. जन्म होने की
प्रक्रिया सदा एक सी है पर इंसान कितने विभिन्न तरीकों से मरते हैं. हर व्यक्ति की
मृत्यु किसी न किसी खास रोग या कारण से होती है. अनगिनत रोग हैं और प्राकृतिक
आपदाएं हैं. युद्ध, हिंसा, आतंक के शिकार भी होते हैं कुछ लोग और कुछ अपनी मृत्यु
का चुनाव स्वयं करते हैं. जो जन्मा है वह मरेगा ही, यह ध्रुव सत्य है पर जो मरा है
वह पुनः जन्मेगा ही, यह सत्य नहीं है. वह मुक्त भी हो सकता है, प्रेत भी हो सकता है
. पर हर जीवित की मृत्यु तय है, फिर हमें किस बात का गर्व रहता है, इस माटी में
मिल जाने वाली देह का या इस मन का जो कभी संतुष्ट होना जानता ही नहीं, जो सदा
कमियों पर नजर रखता है अपनी नहीं दूसरों की...अभिमान यदि सच्चे अर्थों में हो सकता
है तो ‘स्व’ का जो प्रेम, शांति, आनंद, सुख, ज्ञान, शक्ति व पवित्रता का पुंज है.
मानव मात्र इस ‘स्व’ का अधिकारी है.
यह परम सत्य है ...फिर भी मनुष्य अहंकारी जीवन जीता है ..
ReplyDeleteअहंकार का भोजन है दुःख...
Deleteaadhyatmik rachna bahut pasand aai aabhar.
ReplyDeleteकितना गहन सत्य है हमे दूसरों से अपनी ओर ही आना है ।
ReplyDeleteहाँ इमरान, हमें दूसरों से सुख की, प्रेम की आशा को त्याग कर अपने भीतर से उस खजाने को पाना है और फिर उसे दूसरों पर लुटाना है यही असली प्रेम है.
Deleteइस परम सत्य कों जानना जरूरी है .. पर आम इंसान के बस में कहाँ होता है ये ...
ReplyDeleteदिगम्बर जी, आम इंसान बन कर तो जाने कितने जन्म जी लिये अब खास बनने का मौसम है...और एक बार जो खास बन जाता है असल में वही आम बन पाता है.
Deleteस्व के आगे इतने मोहबंध मधुमक्खियों से हैं कि उसी में उलझकर रह जाता है मनुष्य
ReplyDeleteरश्मि जी, मधुमक्खियों के मोह बंध जब दुःख देने लगे तो उससे छूटना ही पड़ता है, किसी को दुःख में भी यदि दुःख न दिखाई दे तो उसे क्या कहें, ज्ञानी सुख के पीछे के दुःख को भी देख लेता है,अज्ञानी दुःख में भी सचेत नहीं होता.
Deleteप्रणाम।
ReplyDeleteजन्म के एक और मृत्यु के तरीकों में भेद के पीछे भी कोई रहस्य होगा! क्या यह सिर्फ अपने कर्मों का परिणाम है?
भगवद्गीतामें इस बारे में काफ़ी कुछ कहा गया है, हाँ, मनुष्य के कर्म ही यह निर्धारित करते हैं कि उसकी मृत्यु कैसी होगी व अगला जन्म कैसा होगा.
Delete‘स्व’ का जो प्रेम, शांति, आनंद, सुख, ज्ञान, शक्ति व पवित्रता का पुंज है. मानव मात्र इस ‘स्व’ का अधिकारी है.
ReplyDeleteपरम सत्य