साहित्य में हंस को नीर-क्षीर विवेक ग्राही माना गया है. ऐसा व्यक्ति जो संसार से सत् को तो ग्रहण करे असत् को त्यागता जाये, हंस कहा जाता है, जैसे रामकृष्ण, परमहंस कहलाते हैं. हमने भी अपने जीवन में सार्थक क्षणों को अपनाना है, सार्थक कार्य करने है, सार्थक शब्दों का उच्चारण करना है. इस छोटे से जीवन में इतना समय किसके पास है कि सभी कुछ ग्रहण करता चले, मन को जितना- जितना खाली रखें उतना अच्छा है. अपने लक्ष्य की ओर पहुँचाने वाले साधनों को अपनाना ही अच्छा होगा. यदि किसी का लक्ष्य परम आनंद या शांति को पाना हो तो सेवा, सत्संग व साधना इसके साधन हैं, वाणी का संयम, प्रमाद का त्याग, स्वस्थ तन व मन इसके उपकरण हैं, संत कहते हैं, सेवा से कर्म शुद्धि होती है, ध्यान से मन शुद्धि व योग साधना से तन शुद्धि. मनसा, वाचा, कर्मणा कुछ भी ऐसा न हो जो शास्त्र विरुद्ध हो, जो हिंसा में आता हो, जिससे किसी को पीड़ा हो. ईश्वर के प्रति अटूट निष्ठा रखते हुए, अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए शेष समय का उपयोग अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये लगाना होगा. जब तक ज्ञान में स्थिति नहीं होगी, द्वंद्वों से मुक्ति नहीं मिलेगी.
bahut hi prernadayak lekh.
ReplyDeleteबहुत सार्थक प्रस्तुति...आभार
ReplyDeleteमस्तिष्क ज्ञान देता है, मन भ्रमित करता है ...... इस स्थिति से उबरने में पूरी ज़िन्दगी चली जाती है
ReplyDeleteसुमिरन कर ले मेरे मना तेरी बीती उम्र हरी नाम बिना ...अच्छी विचार लेके aati है आपकी विचार सरणी लोकोपकारी .
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteनिर्मिष लेखन
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
सार्थक अभिव्यक्ति है ...
ReplyDeleteसार्थक विचार।
ReplyDeleteएक एक शब्द में सत्य है, जीवन है.
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट.
ReplyDeleteब्लॉगर्स मीट वीकली 40 में आपका स्वागत है.
देखिए अपनी पोस्ट इस लिंक पर
http://hbfint.blogspot.com/2012/04/40-last-sermon.html
आप सभी सुधीजनों का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों से सजे ज्ञानवर्धक लेख के लिए आपका आभार ..!
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