Friday, April 20, 2012

सार सार को गहि रहे


साहित्य में हंस को नीर-क्षीर विवेक ग्राही माना गया है. ऐसा व्यक्ति जो संसार से सत् को तो ग्रहण करे असत् को त्यागता जाये, हंस कहा जाता है, जैसे रामकृष्ण, परमहंस कहलाते हैं. हमने भी अपने जीवन में सार्थक क्षणों को अपनाना है, सार्थक कार्य करने है, सार्थक शब्दों का उच्चारण करना है. इस छोटे से जीवन में इतना समय किसके पास है कि सभी कुछ ग्रहण करता चले, मन को जितना- जितना खाली रखें उतना अच्छा है. अपने लक्ष्य की ओर पहुँचाने वाले साधनों को अपनाना ही अच्छा होगा. यदि किसी का लक्ष्य परम आनंद या शांति को पाना हो तो सेवा, सत्संग व साधना इसके साधन हैं, वाणी का संयम, प्रमाद का त्याग, स्वस्थ तन व मन इसके उपकरण हैं, संत कहते हैं, सेवा से कर्म शुद्धि होती है, ध्यान से मन शुद्धि व योग साधना से तन शुद्धि. मनसा, वाचा, कर्मणा कुछ भी ऐसा न हो जो शास्त्र विरुद्ध हो, जो हिंसा में आता हो, जिससे किसी को पीड़ा हो. ईश्वर के प्रति अटूट निष्ठा रखते हुए, अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए शेष समय का उपयोग अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये लगाना होगा. जब तक ज्ञान में स्थिति नहीं होगी, द्वंद्वों से मुक्ति नहीं मिलेगी. 

13 comments:

  1. bahut hi prernadayak lekh.

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  2. बहुत सार्थक प्रस्तुति...आभार

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  3. मस्तिष्क ज्ञान देता है, मन भ्रमित करता है ...... इस स्थिति से उबरने में पूरी ज़िन्दगी चली जाती है

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  4. सुमिरन कर ले मेरे मना तेरी बीती उम्र हरी नाम बिना ...अच्छी विचार लेके aati है आपकी विचार सरणी लोकोपकारी .

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  5. सार्थक प्रस्तुति!

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  6. सार्थक प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति...

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

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  7. सार्थक अभिव्यक्ति है ...

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  8. एक एक शब्द में सत्य है, जीवन है.

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  9. अच्छी पोस्ट.
    ब्लॉगर्स मीट वीकली 40 में आपका स्वागत है.
    देखिए अपनी पोस्ट इस लिंक पर
    http://hbfint.blogspot.com/2012/04/40-last-sermon.html

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  10. आप सभी सुधीजनों का स्वागत व आभार !

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  11. सुन्दर शब्दों से सजे ज्ञानवर्धक लेख के लिए आपका आभार ..!

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