वही इस जगत का आधार है. वही सारे
स्पन्दनों का आधार है. पहले शब्द हुआ फिर उसके अनुरूप आकृति. हमारे भीतर भी वही आदि
सत्ता विद्यमान है. यह जगत हमें इसीलिए तो प्रिय लगता है, क्योंकि यह सब कुछ उसी
का है. एक उसी को चाहो तो प्रकृति भी साथ देने लगती है. जगत जो हर पल अपना शासन मन पर करना चाहता है, वह भी
प्रिय लगने लगता है. समय का प्रतिबंध, जीवन में अनुशासन, और एक कर्म बद्धता अपने
आप आने लगती है. वह हमारे ह्रदय की हर बात जानते हैं, गुणातीत, सबके मध्य होते हुए
भी अलिप्त,, सुख-दुःख से परे, उद्वेग रहित, आकाश की भांति... उनसा होने के लिये ही
उनको चाहना, धर्म के मार्ग पर दृढ़ रहना है. यदि परम के प्रति प्यास जगी है तो उस
पौधे को सींचते रहना चाहिए. अन्यथा वह पौधा सूख जायेगा. सभी को पूर्णता की तलाश
है. तन और मन के स्तर पर हम कभी पूर्ण नहीं हो सकते, आत्मिक स्तर पर ही हम पूर्णता
का अनुभव कर सकते हैं. इसकी झलक मिलते ही अपना आप जैसे सारे ब्रह्मांड को व्याप्त कर
लेता है. दुनिया एक खेल लगती है...एक नाटक. ध्यान से देखें तो जीवन का अर्थ क्या
है ? क्या यह फूलों के खिलने और और फिर मुरझा कर झर जाने जैसा नहीं है. पर मुरझाने
से पूर्व वे अपनी सारी खुशबू को लुटाते हैं जो उनके भीतर है. आत्मा में भी प्रेम की
खुशबू है, हमारे तन व मन भी प्रेम की मांग
करते हैं, आत्मा के लिये वे भी ‘पर’ हैं, उसका सबसे पहला प्रेम तो उन्हें ही मिलता
है. इसके बाद वह अपने आप बिखरने लगता है.
बहुत कुछ सिखाती है ये पोस्ट पूर्णता की और बढ़ने की ओर ।
ReplyDeleteआत्मा में भी प्रेम की खुशबू है, हमारे तन व मन भी प्रेम की मांग करते हैं, आत्मा के लिये वे भी ‘पर’ हैं, उसका सबसे पहला प्रेम तो उन्हें ही मिलता है. इसके बाद वह अपने आप बिखरने लगता है.
ReplyDeleteजानकारी :कोलरा (हैजा )
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
वाह अनीता जी ....आपको पढ़ कर लगता है ....ये वाही बातें तो हैं ....जो मेरे मन में हैं .....
ReplyDeleteबहुत सुकून देतीं हैं आपकी बातें ....पिछले कुछ दिनों से नेट से दूर थी ...अब धीरे धीरे पढ़ती हूँ सब छूटा हुआ ...
शुभकामनायें आपको इतना सुकून बाटने के लिए ....!!
bahut sundar...aatma bhi ek phool ke samaan hai jharne se pahle khushbu baantti hai...bahut shanti milti hai yesi rachnaon se addbhut vichar.
ReplyDeleteAnupama Tripathi has left a new comment on your post "आत्मा का फूल":
ReplyDeleteवाह अनीता जी ....आपको पढ़ कर लगता है ....ये वाही बातें तो हैं ....जो मेरे मन में हैं .....
बहुत सुकून देतीं हैं आपकी बातें ....पिछले कुछ दिनों से नेट से दूर थी ...अब धीरे धीरे पढ़ती हूँ सब छूटा हुआ ...
शुभकामनायें आपको इतना सुकून बाटने के लिए ....!!
Moderate comments for this blog.
Posted by Anupama Tripathi to डायरी के पन्नों से at April 26, 2012 2:54 AM
आत्मा में भी प्रेम की खुशबू है,
ReplyDeleteBEAUTIFUL POST.
आप्त वाणी मनन योग्य..
ReplyDelete