फरवरी २००३
अक्सर आवश्यकता एवं इच्छा में हमें भेद नहीं मालूम पड़ता, जो वस्तु हमारी आवश्यकता की पूर्ति करे वह कभी दुःख का कारण नहीं बन सकती. इच्छा हमें मानसिक उद्वेग देती है, एक दौड़ में हम शामिल हो जाते हैं. इच्छा उठते ही मन में संकल्प-विकल्प उठते हैं, उसे पूरी करने की धुन हमें बेचैन कर देती है. निर्दोष लगने वाली इच्छा भी मन को अटकाती है, पथ पर चलना संभव नहीं हो पाता. पानी सा मन बहता रहे यही साधना की पहली शर्त है. जैसे आकाश पर बादल आते हैं और चले जाते हैं. मन, बुद्धि आदि आत्मा के चिदाकाश पर आने-जाने वाले बादलों के समान अनित्य हैं, ज्ञान का सूर्य जब निकलता है तो आकाश की स्वच्छ नीलिमा झलकती है.
बिलकुल इन में फर्क करना सीखना है ।
ReplyDeletenice thought
ReplyDeleteसही कहा - इच्छा हमें मानसिक उस्वेग देती है ....और इच्छाएं असीम हैं
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeleterising sun of education
ReplyDeletethoughtful nice post
आवश्यकता एवं इच्छा में हमें भेद नहीं मालूम पड़ता
ReplyDeleteसही कहा।
ठीक बात है..!
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