फरवरी २००३
आत्मा का ज्ञान हमारे भीतर के कुसंस्कारों को उसी तरह जला कर समाप्त कर देता है जैसे कोई चिंगारी सूखी घास को. न जाने कब से हम कुछ खोज रहे हैं, अब हृदय में ज्ञान की प्यास जगी है, ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति फलित हुई है. ज्ञान के दीपक के प्रकाश में बैठने का अवसर मिला है. मन को भी तो विश्राम चाहिए, मन की दौड़ जहाँ खत्म होती है वहीं से आध्यात्मिक लोक की शुरुआत होती है. जो हमारा वास्तविक घर है क्योंकि हम न देह हैं न मन, ये तो हमें प्रकृति द्वारा प्राप्त उपकरण हैं. हमारा वास्तविक रूप बुद्धि व अहंकार से परे एक आनंदमय सत्ता है, जो उस चिन्मय परमात्मा का अंश है. परमात्मा इस सृष्टि का कारण है, हमारा हितैषी है, सुह्रद है. जब तक हम देहात्म भाव से मुक्त नहीं हो पाते तो इस आनंद से वंचित रहते हैं जो हमारा अधिकार है. आत्मस्वरूप में टिकते ही अंतर में प्रेम का अनवरत प्रवाह होता है, तृप्ति का अनुभव होता है,विचारों के प्रति सजगता बढ़ती है सरलता और सहजता हमारा स्वभाव बन जाता है.
हृदय में ज्ञान की प्यास जगी है,
ReplyDeleteईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति फलित हुई
ek shashwat satya.
आनंद ही स्वतंत्रता है
ReplyDeleteआत्म-दीया यूँ ही जलाती रहे आप ..
ReplyDeleteshanti si deti ye post.
ReplyDeleteआपकी डायरी के पन्ने से हमेशा सार्थक बातें निकल कर हम तक पहुंचती हैं।
ReplyDeleteरमाकांत जी, अमृता जी, रश्मि जी, इमरान व मनोज जी, आप सभी का हृदय से आभार !
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