फरवरी २००३
भस्म-भूषित शिव सिखाते
एक दिन तुम राख होगे,
मुंड माला है गले में
कह रही तुम खाक होगे !
विष गले में थाम रखना
वाक् में माधुर्य झलके,
गंग धारा शीश धारे
शीतलता उर से ढलके !
स्वर्ग सा निर्मित हृदय
श्वेत हिम कैलाश जैसा,
चन्द्र मस्तक पर सुशोभे
भाव मधु औषधि जैसा !
शिव के मस्तक पर जो चन्द्रमा है वह
कहता है कि भीतर ज्ञान होने पर भी जहाँ कहीं से ज्ञान मिले, उसे ससम्मान मस्तक पर
धारण करना चाहिए. सर्पों को आपने आभूषण की तरह धारण करने वाले शिव कहते हैं कि
विषम परिस्थितियों को भी गले का हार बना लो. गले में मुंडमाला सदा अंत काल का स्मरण
बनाये रखने के लिये है. कैलाश पर वास बताता है कि मन की स्थिति ऊँची बनी रहे. औघड़
दानी है शिव हमें भी लुटाने की प्रेरणा देते हैं, वैसे भी एक दिन सब छूट ही जाने
वाला है.
shiv ek prerna hai manav matr ke liye
ReplyDeleteशिव के मस्तक पर जो चन्द्रमा है वह कहता है कि भीतर ज्ञान होने पर भी जहाँ कहीं से ज्ञान मिले, उसे ससम्मान मस्तक पर धारण करना चाहिए. सर्पों को आपने आभूषण की तरह धारण करने वाले शिव कहते हैं कि विषम परिस्थितियों को भी गले का हार बना लो. गले में मुंडमाला सदा अंत काल का स्मरण बनाये रखने के लिये है. कैलाश पर वास बताता है कि मन की स्थिति ऊँची बनी रहे. औघड़ दानी है शिव हमें भी लुटाने की प्रेरणा देते हैं, वैसे भी एक दिन सब छूट ही जाने वाला है. bahut sukun mila is satya se
ReplyDeleteएक दिन सब छूट ही जाने वाला है.
ReplyDeleteॐ नम. शिवाय
शिव के पैरहन की इतनी बढ़िया प्रतीकात्मक व्याख्या पढके मन गद गद हो गया .आपका बहुत बहुत आभार .ॐ शान्ति .
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें
सोमवार, 30 अप्रैल 2012
सावधान !आगे ख़तरा है
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रविवार, 29 अप्रैल 2012
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रविवार, 29 अप्रैल 2012
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शोध की खिड़की प्रत्यारोपित अंगों का पुनर चक्रण
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डायरी के पन्नों से
जो पढ़ा, सुना व गुना !
Monday, April 30, 2012
बहुत सुन्दरता से शिवजी के श्रृंगार का वर्णन किया है आपने..
ReplyDeleteनमस्कार. आपकी डायरी पढ़ी. अच्छा लगा. शुकून भरे पल बिताने के लिए एक जगह मिल गयी. धन्यबाद.
ReplyDeleteआभार ! आगे भी आते रहें..
Deleteमैम ! आपकी यह रचना मैंने यु एस अपनी बेटी को मेल की है .आभार आपका इस उत्कृष्ट कृति के लिए कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteसोमवार, 30 अप्रैल 2012
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