फरवरी २००३
सच्चिदानंद का अर्थ है जो सत् है,
चित् है और आनंद स्वरूप है. सत् का अर्थ है- ‘जो है’ और चित् का अर्थ है- ‘जिसे
इसका ज्ञान है’ तथा जो आनंद स्वरूप हैं. सो हम भी सच्चिदानंद हुए, जिसे सोहम् कहकर
भी व्यक्त करते हैं. भक्ति में पहला कदम तो ‘तू ही है’ से शुरू होता है, यह जगत भी
उसी का रूप है, और ‘मैं’ भी जगत का अंश है सो ‘मैं’ भी उसी का रूप हुआ. जब तक यह
बात अनुभव से न जान ली जाये तब तक बुद्धि से तो स्वीकारी जा सकती है. मौन रहकर ही
वह अनुभव हो सकता है, सत्य को बोलकर व्यक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसी क्षण
बोलने वाला पृथक हो जाता है. “प्रेम गली अति सांकरी जामे दो न समाहीं, जब मैं था
तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं”
बहुत ज्ञानवर्धक प्रस्तुति...आभार
ReplyDeletebikul satya sirf anubhav hai
ReplyDeleteसच्चिदानंद स्वरूप परमात्म तत्व की सुन्दर व्याख्या .आभार .कृपया यहाँ भी शिरकत करें -
ReplyDeleteबुधवार, 2 मई 2012
" ईश्वर खो गया है " - टिप्पणियों पर प्रतिवेदन..!
http://veerubhai1947.blogspot.in/
कैलाश जी,इमरान व वीरू भाई आप सभी का आभार !
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