मार्च २००३
जीवन में सतोगुण कैसे आये, इसका वर्णन करते हुए संत कहते हैं कि संयम और सेवा यह
दो ही सूत्र हैं, अर्थात मन पर नियंत्रण और हाथ से कर्म, ऐसे कर्म जो हितकारी हों.
ईश्वर का सुमिरन भी तभी होगा. अनियंत्रित भोग और स्वार्थ ही हमें उससे दूर ले जाता
है. वह हमसे हमारी भलाई की अपेक्षा के अतिरिक्त कुछ भी अपेक्षा नहीं रखता. वह हमें
कदम-कदम पर चेताता है कि अपनी ऊर्जा को व्यर्थ न गवाएं. मौन केवल वाणी का हो तो
उससे लाभ नहीं है, भीतर का मौन होना चाहिए. इसी मौन में चिदाकाश का दर्शन होता है.
शुभ्र, अनंत, स्वच्छ नीले आकाश की तरह. जिसमें कोई तरंग न उठ रही हो ऐसी झील कई
तरह ! कोई द्वंद्व नहीं, कोई अंतर विरोध नहीं, कोई कामना भी नहीं, बस अपना होना ही
जहाँ पर्याप्त होता है. ‘हम हैं’ यह अनुभूति, ‘हम परमात्मा के अंश हैं’ यह ज्ञान
और इस ज्ञान से उत्पन्न सहज आनंद !
ईश्वर देता है , बस देता है
ReplyDeleteमौन में चिदाकाश का दर्शन होता है. शुभ्र, अनंत, स्वच्छ नीले आकाश की तरह.
ReplyDeleteek sat bhaw gangaa ki tarah nirmal.
बहुत साधना के बाद सधता है ये की जब मन के विचारों पर नियंत्रण रखना सीख पाएं हम ।
ReplyDeleteमार्च २००३
ReplyDeleteजीवन में सतोगुण कैसे आये, इसका वर्णन करते हुए संत कहते हैं कि संयम और सेवा यह दो ही सूत्र हैं, अर्थात मन पर नियंत्रण और हाथ से कर्म, ऐसे कर्म जो हितकारी हों.
सच यही है अनुकरणीय भी है .
कृपया यहाँ भी पधारें -
सावधान :पूर्व -किशोरावस्था में ही पड़ जाता है पोर्न का चस्का
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
रश्मि जी, रमाकांत जी, इमरान और वीरू भाई, अप सभी का स्वागत व आभार !
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