मार्च २००३
कभी कतरे को दरिया
समझ कर डूब जाते थे
मगर अब निर्मल दरिया
को भी कतरा समझते हैं....
सत्य हमें प्रेम और
बल से भर देता है. उसका खजाना तो सदा है पर चाबी हमारे हाथ नहीं आती, उस चाबी का
पता हमें साधना के रूप में मिलता है. इस खजाने की हिफाजत भी आवश्यक है, कहीं इसे
पाकर सूक्ष्म अहंकार पुनः न दबोच ले. स्वयं को निरंतर कसौटी पर कसना है, स्वयं को
बख्शना नहीं है और अन्यों की गलतियों पर ध्यान भी नहीं देना है. जो कर्म में सजग है
वही ध्यान में भी सजग रहेगा.
जो कर्म में सजग है वही ध्यान में भी सजग रहेगा.....bilkul sahi baat hai sahmat hoon isse.
ReplyDeleteबहुत सही कहा है आपने ...
ReplyDeleteबिल्कुल सही बात है ...!अपना कर्म ध्यान रहे बस ....
ReplyDeleteआपकी सोच मंदिर में जलते दिए सी होती है
ReplyDeleteरश्मि जी, सोच मेरी नहीं है यह उसी की है जो भीतर बैठ कर लिखवा रहा है...आभार!
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