“जिन्ह हरि कथा सुनी नहीं काना,
श्रवण रन्ध्र अहि भवन समाना” हरि कथा हृदय को शीतलता प्रदान करती है, तीनों तापों
से मुक्त करती है. अंतर्मन को शुद्ध और पावन करती है. उच्च विचारों का प्रवाह
हमारे भीतर होने लगता है. अपने से मिलाती है, एक बार बोध होने पर उसमें कैसे टिके
रहें वह उपाय बताती है. शाश्वत और नश्वर का भेद पता चलता है. समय का सही उपयोग
कैसे हो इसका ज्ञान होता है. हम संसार का ज्ञान प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं, पर
कितना भी जान लें वह अधूरा ही रहता है, संसार बनाने वाले का ज्ञान ही हमें पूर्ण
कर सकता है. जिससे सब कुछ जाना जाता है, जिससे सब कुछ हुआ है, जो सत्य है, शिव है,
सुंदर है, जो आनंद है. जिसका चिंतन हमें मुक्त करता है. मुक्ति ही आनंद है, बंधन
ही दुःख है. विकारों की रस्सियों से बंधे मन को हमें स्वयं ही खोलना है, और मन ने
स्वयं ही यह बंधन बांधा हुआ है, वही स्वयं को मुक्त कर सकता है, पर यह समझ सत्संग
देता है, हरि कथा देती है.
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