मार्च २००३
प्रेम दीवाने जो भये, मन भयो
चकनाचूर, छकत रहे घूमत फिरे, सहजो कहत हजूर ! हृदय में ईश्वर के लिये प्रेम होगा
तो एक नादान बालक की रक्षा जैसे माँ करती है, वैसे ही वह अन्तर्यामी हमारे कुशल
क्षेम का भार उठा लेगा. वह, जिसे हमारे पल-पल की खबर है, उसके लिये हृदय में चाह
तीव्र से तीव्रतर होती जाये तो वह स्वयं को प्रकट करता है. जैसे भक्त भगवान की राह
देखता है भगवान भी उसकी राह देखते हैं. अंतर्मन यदि पूरी तरह खाली हो जाये और
संसार की कोई लालसा शेष न रहे तो वह उसमें आ विराजता है. उसके कदम पड़ते ही भीतर
प्रकाश हो जाता है, इस अनंतता में हम हैं, अनंत हमारे साथ है, यही अहसास रह जाता
है, अपने पास होने का अनुभव और सारी दुविधाओं का नाश एक साथ ही घटित होते हैं. तब
कृतज्ञता वश नेत्रों में जल भर आता है या हृदय में ऐसी कचोट उठती है कि उसे शब्दों
में कहना संभव नहीं. देहाध्यास को मिटाते जाना है उस परम को पाने के लिये.
जैसे भक्त भगवान की राह देखता है भगवान भी उसकी राह देखते हैं.
ReplyDeleteyahi param satya hai.
रमाकांत जी, आपका स्वागत व आभार !
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