मार्च २००३
मानव होने के नाते हमारा ईश्वर से मन का सम्बन्ध है. मन, बुद्धि को उससे जोड़ कर
रखने से मानव जिस ऊँचाई तक पहुँच सकता है, वह उसके बिना नहीं होता. ऐसा व्यक्ति
सुख व मान बाँटता रहता है उसका हृदय इनसे छलकता रहता है, इनकी मांग करने वाले का
हृदय सदा अभाव का अनुभव करता है. हमारा आध्यात्मिक स्वास्थ्य बना रहे इसके लिये
हमें साधना करनी होगी. मन की बिखरी हुई ऊर्जा को एक जगह केंद्रित करना है. इस जगत
में कांच के टुकड़ों के अलावा कुछ भी मिलने वाला नहीं है. हीरे के समान आत्मा जब
स्वयं हमारे पास है. सागर यदि सम्मुख हो तो बाल्टी से स्नान कौन करेगा. आत्मरूप
में स्वयं को जानने पर वह परमात्मा हमसे अलग हो भी नहीं सकता. मृत्यु के भय से हम
मुक्त हो जाते हैं. काल हमारे लिये वर्तमान में बदल जाता है. वर्तमान ही सदा सत्य
है और वर्तमान का यह पल अटल है.
इस जगत में कांच के टुकड़ों के अलावा कुछ भी मिलने वाला नहीं है. हीरे के समान आत्मा जब स्वयं हमारे पास है. सागर यदि सम्मुख हो तो बाल्टी से स्नान कौन करेगा. आत्मरूप में स्वयं को जानने पर वह परमात्मा हमसे अलग हो भी नहीं सकता. मृत्यु के भय से हम मुक्त हो जाते हैं. काल हमारे लिये वर्तमान में बदल जाता है. वर्तमान ही सदा सत्य है और वर्तमान का यह पल अटल है.
ReplyDeleteशाश्वत सत्य यही है
ram ram bhai
शुक्रवार, 18 मई
ऊंचा वही है जो गहराई लिए है.
शाश्वत सत्य यही है
शाश्वत सत्य यही है
ReplyDeleteशाश्वत सत्य यही है
ReplyDeletesunder satya .
ReplyDeleteshubhkamnayen .
वर्तमान आज का सत्य , अतीत कल का सत्य था ....
ReplyDeleteआत्मरूप में स्वयं को जानने पर वह परमात्मा हमसे अलग हो भी नहीं सकता. मृत्यु के भय से हम मुक्त हो जाते हैं. काल हमारे लिये वर्तमान में बदल जाता है. वर्तमान ही सदा सत्य है और वर्तमान का यह पल अटल है.
ReplyDeletebahut khubasurat saty .ANUKARANIY
अनुपमा जी, रश्मि जी, वीरूभाई, व रमाकांत जी अप सभी का स्वागत व आभार!
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