जब छोटा मन पिघल जाता है, बह जाता है, न-मन हो जाता है,
तब भीतर रस का स्रोत फूट पड़ता है, तब जो बचता है वही बड़ा मन है, गुरु तत्व है. वही
हमारा वास्तविक घर है, जहाँ हम तुष्टि-पुष्टि पाते हैं. मन जब विचारों के प्रवाह
से मुक्त होता है, भाव जगते हैं, कोमलता का अहसास होता है, संवेदनशीलता बढ़ती है,
तब छोटा मन जो स्वयं को पृथक समझता है, खो जाता है. विशाल मन सारी समष्टि को अपना
मानता है. इस तरह सभी एक ही धागे में पिरोये मोती की तरह प्रिय लगते हैं. तब हम
हजार मुख वाले, हजार हाथों वाले, हजार पैरों वाले हो जाते हैं. हमारा अंतर्मन इतना
खाली हो जाता है कि जगत के ताप उसको सताते नहीं. वह द्वंद्वात्मक नहीं रहता
कर्तृत्व की कामना शांत हो जाती है, फल की तो कामना रहती नहीं. यह जगत एक क्रीड़ा
स्थल प्रतीत होता है. इसका विस्तार विस्मय को जन्म देता है और श्रद्धा को भी.
कोई शक नही .
ReplyDeleteअनीता जी छोटा मन से आशय विचारों से भरे मन से है क्या?.....अगर हाँ तो अभी हम छोटे मन की कैद में हैं ।
ReplyDeleteइमरान, छोटे मन से तात्पर्य है ऐसा मन जो शंकित है, जिसमें अभाव है, जो सदा एक ज्वर से पीड़ित है जो कुछ न कुछ उधेड़बुन में लगा रहता है..और जब ज्ञान से या भक्ति से या निष्काम कर्म से यह मन ठहर जाता है तब झलक मिलती है उसकी जो न-मन है
Deleteशुक्रिया अनीता जी बताने का ।
Deleteमन पिघल जाता है, बह जाता है, न-मन हो जाता है, तब भीतर रस का स्रोत फूट पड़ता है, तब जो बचता है वही बड़ा मन है, गुरु तत्व है.
ReplyDeletesundar sach .anukaraniy.