Wednesday, June 6, 2012

लगन लगायी जिसने उससे


अप्रैल २००३ 
हमारे जीवन में प्रेम नित नवीन होता रहे, निरंतर उसमें वृद्धि हो, उसकी बन्दगी भी हम बढाते रहें, समर्पण को द्विगुणित करते चलें तो जीवन में अन्य कोई रह ही नहीं सकता सिवाय उस एक राम के जो रोम-रोम में बसता है. उस कृष्ण के जो हर क्षण हमें अपनी ओर आकर्षित करता है, उस जगन्माता के जो हमारा पोषण करती है, उस शिव के जो सदा हमारा कल्याण करता है, उस गणपति के जो हमारे जीवन से विघ्न-बाधाओं को हटाता है, और जब हमारा हृदय उस परमब्रह्म का घर हो जाता है तो हृदय से सारे चोर निकलते लगते हैं, मुक्ति का आनंद ही हमें भक्ति करने को प्रेरित करता  है. हम कृतज्ञता प्रकट करते हैं और अपनी आत्मा की झलक पाकर विस्मित भी हो जाते हैं, परम की सुंदरता अपरिमेय है, हमारा अंतर्मन भगवद्शक्ति का आश्रय लेकर सहज प्राप्त कर्त्तव्य निभाता है, कर्मों के बंधन नहीं बाँधते, पुराने संस्कार नष्ट हुए लगते है. शांति का एक आवरण हमारे चारों ओर छाने लगता है, जिसको भेद कर संसार का कोई दुःख हमें छू नहीं सकता उस परम प्रिय का प्रेम एक कवच बन कर हमारे साथ रहता है.  


5 comments:

  1. मुक्ति का आनंद ही हमें भक्ति करने को प्रेरित करता है. हम कृतज्ञता प्रकट करते हैं,,,,

    MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,

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  2. waah kitnaa sundar ..prem kavach ..
    bilkul sahi likha hai ...!!

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  3. उस परम प्रिय का प्रेम एक कवच बन कर हमारे साथ रहता है.
    बेहतरीन .

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  4. धीरेन्द्र जी, अनुपमा जी, व कुसुमेश जी, आप सभी का स्वागत व आभार...

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