Thursday, March 9, 2017

ममेवांशो जीवलोका:

१० मार्च २०१७ 
कबीर ने कहा है, कोई सागर को स्याही बना ले और सारे वनों की कलम बना ले तब भी उस परमात्मा का बखान नहीं कर सकता. कृष्ण कहते हैं, मैं अपने एक अंश में इस सम्पूर्ण सृष्टि को धारण करता हूँ. आज के वैज्ञानिक भी कहते हैं जो दिखाई देता है वह उस न दिखाई देने वाले की तुलना में अति सूक्ष्म है. हमारी बुद्धि चकरा जाती है यह सोचकर कि अरबों, खरबों  गैलेक्सी भी उस अनंत के सामने कुछ नहीं. इस विशाल सृष्टि में मानव का स्थान कितना छोटा है पर उसके भीतर जो चैतन्य है वह उसी परमात्मा का अंश है, राजा कितना भी बड़ा हो, उसके पुत्र के लिए वह सदा सुलभ है, ऐसे ही परमात्मा कितना भी महान हो मानव के लिए वह हर क्षण उपलब्ध है. मानव जन्म का इसीलिए इतना गौरव गाया गया है. हमारा मूल बना है उसी तत्व से जिससे वह बना है. प्रेम, शांति, पवित्रता, ज्ञान, शक्ति, सुख और आनंद हमारा मूल स्वभाव है, तभी तो इससे विपरीत होते ही हम व्याकुल हो जाते हैं. जितना-जितना हम अपने मूल से दूर चले जाते हैं, दुःख को प्राप्त होते हैं. 

2 comments:

  1. इस विशाल सृष्टि में मानव का स्थान कितना छोटा है पर उसके भीतर जो चैतन्य है वह उसी परमात्मा का अंश है, राजा कितना भी बड़ा हो, उसके पुत्र के लिए वह सदा सुलभ है, ऐसे ही परमात्मा कितना भी महान हो मानव के लिए वह हर क्षण उपलब्ध है.

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  2. स्वागत व आभार राहुल जी !

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