फरवरी २००१
परमार्थ की राह पर चलने वाले को कदम-कदम पर सजग रहना है. हर देखी, सुनी वस्तु का चित्र हमारे मन पर अंकित हो जाता है. दुःख को मिटाते-मिटाते व सुख की चाह करते-करते जीवन बीत जाता है, मिथ्या की सत्यता स्पष्ट नहीं होती. ज्ञान रूपी सूर्य को पीठ देकर हम छाया के पीछे दौड़ते हैं. तुच्छ को महत्व देने से ही हम स्वयं में श्रद्धा नहीं कर पाते. यह संसार सापेक्ष है, लेकिन कुछ तो है जो मानक है. उस परम की खोज में ही वास्तविक आनंद है, बाकी सारे कार्य उस उद्देश्य की प्राप्ति के निमित्त ही होने चाहिये. हमारा व्यवहार, वाणी, कर्म, त्तथा सँग भी इस बात का परिचायक होना चाहिए कि हम उस पथ के यात्री हैं.
उस परम की खोज में ही वास्तविक आनंद है,
ReplyDeleteसुन्दर,सार्थक व मनन योग्य विचार है आपके.
अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
jiwan ka nichod likh diya. sunder aur gehra adhyayan.
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