दिसंबर २०००
अभाव ही इच्छा को जन्म देता है, और अभाव अज्ञान से उत्पन्न होता है, अभाव हमारा सहज स्वभाव नहीं है क्योंकि हम वास्तव में पूर्ण हैं. अपूर्णता ऊपर से ओढ़ी गयी है, और चाहे कितनी ही इच्छा पूर्ति क्यों न हो जाये यह मिटने वाली नहीं, क्योंकि पूर्ण तो मात्र ईश्वर है वही इसे भर सकता है. इसी तरह हम मुक्त होना चाहते हैं जबकि मुक्त तो हम हैं ही, बंधन खुद के बनाये हुए हैं, प्रतीत होते हैं. ईश्वर से हमारा सम्बन्ध सनातन है, हम उसी के अंश हैं, उसका प्रेम ही हमारे हृदय में झलकता है. अज्ञान वश जब हम इस सम्बन्ध को भूल जाते हैं तथा प्रेम को स्वार्थ सम्बन्धों में ढूंढने का प्रयास करते हैं तो दुःख को प्राप्त होते हैं. इसीलिए सदगुरु कहते हैं कि न अभाव में रहो, न प्रभाव में रहो बल्कि स्वभाव में रहो.
बहुत अच्छी लगी यह लाइन -न अभाव में रहो,न प्रभाव में रहो बल्कि स्वभाव में रहो.
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