अगस्त २०००
जब हम स्थूल का चिन्तन करते हैं तो बुद्धि भी जड़ हो जाती है, प्रमाद मन की जड़ता है, यह वह स्थिति है जब मन परम चेतन के प्रति उदासीन है. सूक्ष्म का चिन्तन करने से बुद्धि चेतन होती है. जगत का चिंतन स्थूल है और जगदीश का सूक्ष्म. जैसे जब पानी वाष्पीकृत होता है तो उसकी शक्ति बढ़ जाती है, जमने पर घट जाती है. हम सारा जीवन एक आयाम को देखते –देखते ही बिता देते हैं, दूसरे आयाम की ओर हमारा ध्यान ही नहीं जाता. परिधि पर ही रह जाते हैं, अपने केन्द्र को छू नहीं पाते. तभी जीवन में एक अधूरेपन का अनुभव होता है, पूर्णता की चाह बनी रहती है. अपनी पूरी ऊर्जा व ऊष्मा को पाने का अर्थ है चेतन बने रहना. एक सरिता की तरह सातत्य रूप से गतिमान रहना. स्फूर्तिवान होकर मन में नैसर्गिक व सद्कार्यों के प्रति सदप्रवृत्ति जगे रहना.
वर्तमान जीवन शैली में भौतिक सुखों की कमी नहीं है .आत्मिक सुख के लिये समय ही नहीं निकाल पाते.परिणामत:अंतस के दु:खों में सदा घिरे रहते हैं.जीवन शैली में बदलाव लाना ही होगा तब ही जीवन सार्थक होगा.
ReplyDelete