Monday, July 18, 2011
ध्यान
ध्यान वह स्थिति है जहाँ मन नहीं रहता, न अतीत की चिंता, न भावी की कल्पना. संसार समय की बदलती हुई स्थिति को ही दर्शाता है. ध्यान समय, संसार, व मन तीनों से अतीत ले जाता है. ज्ञान का अधकारी समाहित मन ही हो सकता है. ध्यान मन का स्नान है. मन स्वस्थ होता है, चेतना जगती है, मन हल्का होता है लेकिन यह सब परिणाम है, ध्यान के वक्त तो केवल शून्यता होती है, संसार से परे की झलक मिलती है ध्यान में. जो इस जगत को ईश्वर मय जान लेता है उसका ध्यान सहज ही टिकता है. कुछ क्षणों का ध्यान ही शांति की गहरी अनुभूति कराता है.
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बहुत सही कहा है आपन ।
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