मृत्यु बोध को उपलब्ध हुए बिना जीवन विकार मुक्त नहीं हो सकता. यदि हम हर क्षण मृत्यु को याद रखें तो ही वास्तविक जीवन की कद्र करना सीखेंगे. तन मरण धर्मा है, परतंत्र है. इसे प्रकृति के नियमों के अनुसार एक न एक दिन विसर्जित होना है. हम अपनी सारी ऊर्जा इसी को बचाए रखने के लिये लगाते हैं. मन भी परतंत्र है इन्द्रियों का. किन्तु यह चाहे तो स्वतंत्र हो सकता है और उसी दिन यह भी अमन हो जायेगा. आत्मा अमर है, स्वतंत्र है, पर उसका अनुभव मन के पार जा कर ही होगा. इस अनुभव के बाद ही हमें अमरता का अर्थात वास्तविक जीवन का बोध होगा.
Friday, July 22, 2011
वास्तविक जीवन
मृत्यु बोध को उपलब्ध हुए बिना जीवन विकार मुक्त नहीं हो सकता. यदि हम हर क्षण मृत्यु को याद रखें तो ही वास्तविक जीवन की कद्र करना सीखेंगे. तन मरण धर्मा है, परतंत्र है. इसे प्रकृति के नियमों के अनुसार एक न एक दिन विसर्जित होना है. हम अपनी सारी ऊर्जा इसी को बचाए रखने के लिये लगाते हैं. मन भी परतंत्र है इन्द्रियों का. किन्तु यह चाहे तो स्वतंत्र हो सकता है और उसी दिन यह भी अमन हो जायेगा. आत्मा अमर है, स्वतंत्र है, पर उसका अनुभव मन के पार जा कर ही होगा. इस अनुभव के बाद ही हमें अमरता का अर्थात वास्तविक जीवन का बोध होगा.
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बहुत सही कहा है आपने ।
ReplyDeleteगहन ओर सार्थक वचन हैं आपके.
ReplyDeleteअनिताजी,आपकी उच्च भावस्थिति को देखकर बहुत हर्ष होता है.
कल 06/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
मृत्यु बोध को उपलब्ध हुए बिना जीवन विकार मुक्त नहीं हो सकता....
ReplyDeleteसत्य कहा आपने... सार्थक सन्देश...
साडर...