Monday, August 8, 2011

ईश्वरीय योग


अगस्त २००१ 
भगवद्गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं कि योग को प्राप्त हुआ व्यक्ति सुख-दुःख, हानि-लाभ, मान-अपमान अदि द्वंद्वों में सम रहता है. हम अपने जीवन को देखें तो जब भी हम सांसारिक विषयों के बारे में बात करते हैं तो हानि-लाभ की तराजू में टोल कर करते हैं, अपने विषय में बात करते हैं तो विषाद या आत्मप्रशंसा के अतिरिक्त कोई तीसरा भावआता ही नहीं. दूसरों के बारे में बात करते हैं तो भी हम तटस्थ नहीं रह पते, निंदा या स्तुति के भाव से घिरे रहते हैं, और असत्यभाषी भी हो जाते हैं. सर्वोत्तम यही है कि हम ऐसे विषयों का चिंतन करें जो भगवद्भाव से जुड़े हों. जिसमें समता बनी ही रहेगी, जैसे परहित, परोपकार, स्नेह और पवित्रता से जुड़े भाव. अपने विचारों, कर्मों, व वाणी के प्रति प्रतिपल सजग रह कर ही कोई योग को प्राप्त हो सकता है. 

1 comment:

  1. मुझे क्षमा करे की मैं आपके ब्लॉग पे नहीं आ सका क्यों की मैं कुछ आपने कामों मैं इतना वयस्थ था की आपको मैं आपना वक्त नहीं दे पाया
    आज फिर मैंने आपके लेख और आपके कलम की स्याही को देखा और पढ़ा अति उत्तम और अति सुन्दर जिसे बया करना मेरे शब्दों के सागर में शब्द ही नहीं है
    पर लगता है आप भी मेरी तरह मेरे ब्लॉग पे नहीं आये जिस की मुझे अति निराशा हुई है
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

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