नवम्बर २००१
अध्यात्म के मार्ग पर न जाने कितने मोड़ आते हैं, जिनसे एक साधक को गुजरना होता है. एक तरफ तो यह तलवार की धार पर चलने जैसा है, दूसरी तरफ विस्मित कर देने वाला भी है. हर क्षण भंगुर सुख की कीमत इस जगत में चुकानी पडती है, लेकिन आत्मसुख का अंत नहीं है, उसे सीमा में नहीं बांधा जा सकता. एक क्षण ऐसा भी आता है जब ध्यान न करते हुए भी जब ध्यान जैसी स्थिति बनी रहे, मधुर भाव यूँ ही बना रहे. सारा जगत एक स्वप्न की भांति जान पड़े. सब कुछ जैसे थम गया हो, शून्य ही शून्य हो, आत्म बोध के अतिरिक्त कोई बोध न जान पड़े. ऐसे और इससे भी तीव्रतर अनुभवों के लिए साधक को तैयार रहना होता है. प्रकृति उसे कई रूपों में अनंत के दर्शन कराती है.
जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
ReplyDeleteदुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
ईद मुबारक